Last modified on 9 अक्टूबर 2009, at 06:44

धनुर्धर राम / तुलसीदास

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:44, 9 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: सुभग सरासन सायक जोरे॥<br /> खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरत...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुभग सरासन सायक जोरे॥
खेलत राम फिरत मृगया बन, बसति सो मृदु मूरति मन मोरे॥
पीत बसन कटि, चारू चारि सर, चलत कोटि नट सो तृन तोरे।
स्यामल तनु स्रम-कन राजत ज्यौं, नव घन सुधा सरोवर खोरे॥
ललित कंठ, बर भुज, बिसाल उर, लेहि कंठ रेखैं चित चोरे॥
अवलोकत मुख देत परम सुख, लेत सरद-ससि की छबि छोरे॥
जटा मुकुट सिर सारस-नयनि, गौहैं तकत सुभोह सकोरे॥
सोभा अमित समाति न कानन, उमगि चली चहुँ दिसि मिति फोरे॥
चितवन चकित कुरंग कुरंगिनी, सब भए मगन मदन के भोरे॥
तुलसिदास प्रभु बान न मोचत, सहज सुभाय प्रेमबस थोरे॥