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दुरमुट / प्रताप सहगल

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मज़दूर के हाथों
रोड़ी कूटता दुरमुट
फिसल जाता है

हथिया लेता है उसे डाक्टर
और मोटी सुई बना लेता है

मास्टर के हाथों मे
छ्डी बन जाता है दुरमुट

पिता के हाथों मे आदेश

राजनेता के हाथ मे
स्टेनगन होता है दुरमुट

और धर्माचार्य के होंठों पर
काला मंत्र

अजीब शै है दुरमुट
हाथ बदलते ही शक्ल बदलता है
सुई, छड़ी, आदेश, काला मंत्र
या नौकरशाह की
भारी भरकम क़लम

कितना अच्छा लगता है
मज़दूर के हाथों मे ही दुरमुट
समतल करता ज़मीन
उस पर बनता है फ़र्श
फ़र्श पर ही टिके रहते है पाँव
वही से दिखते है शहर, कस्बे और गाँव

दुरमुट का हाथ बदलना
इतिहास मे बार-बार हुई दुर्घटना है