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स्त्री / सुमित्रानंदन पंत

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यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी के उर के भीतर,
दल पर दल खोल ह्रदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर !

मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर
नवजीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर

यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में दल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को धेकेल सकती सत्वर !