गोल फूला हुआ ग़ुब्बारा थक कर
एक नुकीली पहाड़ी यूँ जाके टिका है
जैसे ऊँगली पे मदारी ने उठा रक्खा हो गोला
फूँक से ठेलो तो पानी उतर जाएगा
भक से फट जाएगा फूला हुआ सूरज का ग़ुब्बारा
छन से बुझ जाएगा इक और दहकता हुआ दिन
गोल फूला हुआ ग़ुब्बारा थक कर
एक नुकीली पहाड़ी यूँ जाके टिका है
जैसे ऊँगली पे मदारी ने उठा रक्खा हो गोला
फूँक से ठेलो तो पानी उतर जाएगा
भक से फट जाएगा फूला हुआ सूरज का ग़ुब्बारा
छन से बुझ जाएगा इक और दहकता हुआ दिन