Last modified on 20 अक्टूबर 2009, at 05:45

बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे / घनानंद

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:45, 20 अक्टूबर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }}<poem>बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे, खरे अरब…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बहुत दिनान के अवधि-आस-पास परे,
खरे अरबरनि भरे हैं उठि जान कौ।
कहि कहि आवन सँदेसो मनभावन को,
गहि गहि राखत हैं दै दै सनमान कौ।
झूठी बतियानि की पत्यानि तें उदास ह्वै कै,
अब न घिरत घनआनँद निदान कौ।
अधर लगै हैं आनि करि कै पयान प्रान,
चाहत चलन ये सँदेसौ लै सुजान कौ॥