Last modified on 23 अक्टूबर 2009, at 09:26

सदस्य वार्ता:Gopal Baghel 'Madhu'

Gopal Baghel 'Madhu' (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:26, 23 अक्टूबर 2009 का अवतरण (Diipa'valii ke avar par likhii kavita prastut hai a'pako shubha kamana'om' sahit)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
Return to "Gopal Baghel 'Madhu'" page.

मैं दीप जलाता हूँ उर में

शीर्षक

मधु गीति सं. ५६७, रचना दि. १६ अक्टूवर, २००९ ( दीपावली की पूर्व संध्या)

मैं दीप जलाता हूँ उर में, मैं राग जगाता हूँ सुर में; तुम शाश्वत दीप जलादो ना, तुम निर्झर सुर में गा दो ना.

मेरी दीवाली तुम में है, मेरे गोवर्धन तुम ही हो; मेरी लक्ष्मी पूजा तुम हो, मेरे गणेश तुम ही तो हो.

तुम अभिनव नट नागर प्रभु हो, तुम नित्य सनातन चेतन हो; तुम ओजस्वी आनन्द अनंत, तुम तेजस्वी त्रैलोक्य प्रवृत.

मैं तुम्हरा ही तो उर दीपक, तुम ही तो मेरे सुर प्रेरक; तव कृपा कणों की मैं ज्योति, तुम मम जीवन की चिर ज्योति.

तुमरे दीपक हैं सब उर में, तुमरे ही सुर सबके उर में; मैं गा देता तुमरे सुर में, सब सुन लेते 'मधु' से उर में.

गोपाल बघेल 'मधु' टोरंटो, ओंटारियो, कनाडा GopalMadhuGiiti@gmail.com www.AnandaAnubhuti.com www.PerceptionOfBliss.com