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बात / हरजेन्द्र चौधरी

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जो बात उसने कही वहाँ
काटता रहा उसे मैं तर्क की तीखी आरियों से
पूरी सभा में

वही हरी-भरी बात मैंने कही कहीं दूसरी जगह
जगह बदलकर
वह मारता रहा कुल्हाड़े रस-भरे तने पर

जगह बदलते ही बदल जाती है बात
जिसे कहते या काटते हैं हम
आरी-कुल्हाड़े चलाते

हम यानी असल में
अपने-आप पर दे रहे होते हैंज़ोर
बात पर नहीं...


रचनाकाल : 1999, नई दिल्ली