सादर नमस्कार धर्मेन्द्र जी
एक और किताब पूरी होने पर बधाई स्वीकार करें आप तो इतने कम समय में मेरे ideal भी बन गए हैं, काम करने की गति , लगन , और लक्ष्य पर नज़र सभी गुण झलकते हैं मैं बहुत प्रभावित हूँ और खुद को बदलने के लिए बाध्य ..................................
अपने वार्ता पन्ने से पुरानी वार्ता जो अब अनुपयोगी हो उसे हटाने से नयी वार्ता में आसानी होती है .........
--Shrddha १३:००, २३ अक्टूबर २००९ (UTC)
डॉ रमेश पोखरियाल ’निशंक’
प्रिय भाई! निशंक जी के कई संग्रह मेरे पास हैं। लेकिन कविता कोश मुझे उनकी कविताओं के अनुकूल नहीं लगता। आशा है, आप अन्यथा नहीं लेंगे। सादर --अनिल जनविजय १९:३१, २६ अक्टूबर २००९ (UTC)