संतुष्ट आक पर नित्य रहो सहर्ष,
हे ग्रीष्म, संतत करो उसका प्रकर्ष।
है कौन हेतु, पर हो कर जो कराल,
हो नष्ट भ्रष्ट करते तुम थे तमाल
संतुष्ट आक पर नित्य रहो सहर्ष,
हे ग्रीष्म, संतत करो उसका प्रकर्ष।
है कौन हेतु, पर हो कर जो कराल,
हो नष्ट भ्रष्ट करते तुम थे तमाल