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साँचा:KKPoemOfTheWeek

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया
  रचनाकार: शीन काफ़ निज़ाम
पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया 
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया 

अब क्या हुआ कि ख़ुद को मैं पहचानता नहीं 
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया 

हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के दोस्तों 
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया 

गाँवों को छोड़ कर तो चले आए शहर में 
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया

किससे पनाह मांगे कहाँ जाएँ क्या करें 
फिर आफ़ताब रात का घूँघट उलट गया 

सैलाब-ए-नूर में जो रहा मुझ से दूर-दूर 
वो शख़्स फिर अन्धेरे में मुझसे लिपट गया