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नाम / अजित कुमार

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नाम न जाने क्या था तेरा,
ग्राम-धाम होगा जो, होगा,
मान लिया है मैंने
तेरे लिए एक ही नाम ।-
करुणा ।
तुझे खोजने
भला कहाँ मैं जाता
मुझसे तेरा
जन्म-जन्म का नाता…
जुड़ता—जुड़ा—जुड़ाता ।
जो कड़ाह
ओंठों तक आकर
उमड़-घुमड़
मुझमें फिर लौट गई
तू ही तो थी…
कृतज्ञ हूँ ।
करुणा ।
मेरा-तेरा
हम दोनों का
वही, एक ही काम ।
करुणा ।
अपरिचित भाषा थी…
कुछ शब्द गीत के
सुने हुए-से लगते थे ।
कुछ ध्वनियाँ
गूँज
किन्हीं दूरागत ध्वनियों की,
उस दो-गाने की टेर
यही तो थी :
तूऽ । ऊऽ ऊऽ ऊऽ ।
करुणा ।
तेरे लिए एक ही नाम ।
करुणा ।