Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 21:17

जन्मभूमि / अजित कुमार

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:17, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चीज़ें
अब
सिर्फ़ गुज़री हुई चीज़ों को
गुँजाकर
चुक जाती हैं ।
बातें
बस
एक लम्बे अतीत को दोहराती हैं ।
ऐसी ही शाम थी…
अक्तूबर का चाँद
ठीक इतना ही आधा था…
आपस के रंग में डूबे हुए दोस्त
धुँधले उस आधे को उजला करने में लगे थे…
आज वह कोशिश मटमैली हो चुकी है ।
पीछे
जलूस के छूट गए शब्द कुछ
शेष रह गए हैं ।

मँडराती है एक रुग्ण व्यक्ति की कराह ।
जहाँ मेरा जन्म हुआ,
वह देश तो ऐसा न था ।