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दूकान पर / अजित कुमार

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पिछले अनेक बरसों में
जिस अकेले व्यक्ति ने
मेरी पसंद की परवाह की और याद रखी
वह था नुक्कड़ पर का बहुत व्यस्त पानवाला ।
कत्थे चूने और खुशबू के
बिलकुल ठीक अनुपात का सुख…
कल्पित किसी एक मुख को चूम लेने की चाह…
नाचती-मचलती मँडराती हुई एक छाया-सी ।

उन दिनों मेरे पिता
बड़ी मुश्किल से
लाठी टेकते हुए चल पाते थे
जमादार से बिस्तर झड़वाते
रिक्शेवाले से दवाएँ मँगवाते
कहारिन से रोटी सिंकवाते
…एक टूटे हुए घर में ।

तभी…जाने कैसे…
आज शाम के धुँधलके में
इस दूर के शहर में
तेज़ चूने से मुँह कट जाने पर
मैंने, अनायास, उन्हें…व्यग्र…
दूकान पर झुके देखा ।