Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 00:24

धरा-व्योम / अज्ञेय

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण

अंकुरित धरा से क्षमा
व्योम से झरी रुपहली करुणा
सरि, सागर, सोते-निर्झर-सा
उमड़े जीवन :
कहीं नहीं है मरना ।