Last modified on 2 नवम्बर 2009, at 19:28

गूढाशय / सियाराम शरण गुप्त

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:28, 2 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>स्वर्ण सु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

स्वर्ण सुमन दे कर न मुझे जब
तुमनें उसको फेंक दिया;
हो कर क्रुद्ध हृदय अपना तब
मैंने तुमसे हटा लिया।

सोचा-मैं उपवन में जा कर
सुमन इन्हें दिखलाऊं ला कर।
मैने सारी शक्ति लगा कर
कण्टक वेष्टन पार किया।

स्वर्ण सुमन दे कर न मुझे जब
तुमने उसको फेंक दिया।
उपवन भर के श्रेष्ठ सुमन सब,
जा कर तोड़ लिये सहसा जब।

समझ तुम्हारा गूढाशय तब,
हुआ विशेष कृतज्ञ हिया।
स्वर्ण सुमन देकर न मुझे जब
तुमनें उसको फेंक दिया।