Last modified on 3 नवम्बर 2009, at 00:10

बात-1 / शैलेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 3 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शैलेय }} {{KKCatKavita‎}} <poem> लोग कहते हैं - रात गई :::बात गई ले…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लोग कहते हैं - रात गई
बात गई

लेकिन
मैं गाता हूँ
जैसा कि पाता हूँ
हमेशा ही
रात ढह जाती है
बात रह जाती है