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पलायित / सियाराम शरण गुप्त

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अरे पलायित भाव, रूठ कर कहाँ गया तू,
ले आया था आज कौन उपहार नया तू?
मैं था अन्यमनस्क कि एसे में तू आया,
छली, तुझे मैं भली भाँति पहचान न पाया।

आया था क्या कुशलकथा ले नन्दनवन से;
सुमन नयन कर या कि शुभाषा के कानन से;
या कि भविष्यत-जालवेध कुल लाया था तू;
आगामी कुछ दृश्य देख कर आया था तू;

या वार्तावह बना चाहता था तू मेरा
दूर लोक के लिये; इष्ट, क्या था यह तेरा?
बीच मार्ग से लौट गया क्यों निर्मम बन तू;
मेरा विषम विषाद और कर गया सघन तू।