Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 22:07

मौसम / अनूप सेठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.

हवा के रास्ते
सूरज वस्त्र वस्त्र जल सोख लेने पर उतारू है
नदी के वास्ते
यह भी एक ऋतु आई है.

2.

पहाड़ों ने रख दिया
कतरा कतरा समुद्र घाटियों के हाथ
नदी उठी
चली पीहर
ले उत्सवी सौगात.

3.

रात भर दहकते रहे हैं बादल
चार पग उतर क्यों नहीं आए तुम
हवा के आंचल ही बांध भेज देते
तनिक सी एक फुहार.

4.

हवा उड़ी ले
विश्वासों के कुछ भीगे हिन्से
युकिलिप्टस झर चला
बस ताकता आकाश.

(1978)