Last modified on 4 नवम्बर 2009, at 22:14

सामना / अनूप सेठी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:14, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

दुख का पहाड़ खड़ा है बच्चे !
नन्हे हाथों से कुरेदोगे पहाड़

रत्ती भर खरोंच भी नहीं पाओगे
ज़िंदगी भर काटते रहोगे।

एक आँसू की डली तैरेगी
धुँधली हो के ही फैलेगी सारी दुनिया।

बस जबड़े कसके रहो
हो तो आंख झपकना मत।
                   (1985)