निहितार्थ के लिए / अभिज्ञात

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:51, 4 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैंने सम्पादक से कहा
यह कविता नहीं आंदोलन है
जवाब मिला - इसे किसी संगठन के हवाले कर दो
उसे इसकी ज़्यादा ज़रूरत होगी
क़िताबों के ताबूत में दफ़न नहीं होनी चाहिए क्रांतियाँ
उसे चाहिए आम जनता की शिरकत

मैंने संगठनों से कहा
यह लो भई
यह आंदोलन नहीं आग है
दहकते हुए अंगारे
चिंगारी से बढ़कर

तब तक संगठन एन०जी०ओ० की शक्ल ले चुके थे

ख़ैर तो यह हुई कि उन्होंने मुझे भठियारों के पास भेज दिया
कहा - वहीं है आग का असली कद्रदान
वह कर पाएगा आँच व तपिश का
एकदम सही इस्तेमाल

मैंने वैसा ही किया
भठियारे से कहा-
यह आग नहीं कोयला भी है
बल्कि तुम्हारे लिए तो कोयला ही
जब-जब चाहोगे इसकी मदद से
लाल दहकते अंगार से भर उठेगी तुम्हारी भट्ठी
इसका कोयला कायम रहेगा जलने के बाद भी
कई-कई सदियों तक
पुश्त दर पुश्त
कोयले की यह असीम विरासत तुम सम्भालो

उसने कहा-
ले जाओ इसे किसी गाँव की गृहिणी के पास
वहाँ इसकी सख़्त ज़रूरत है
वहाँ नहीं है ईंधन
जलावन नहीं बचे अब गाँव में
बोरसियाँ तक ठंडी पड़ी हैं
कोयला तो गाँव तक पहुँचता ही नहीं

मैं ख़ुश था
मिल गया था मुझे सही ठौर
मैं गाँव-गाँव घर-घर घूमा
मैंने गृहिणियों से कहा
इसे रखो सहेज कर
यह ईंधन भर नहीं है
कि झोंक दो चूल्हे में
ताप जाओ किसी ठंडी रात में जला एक अलाव की तरह
यह और भी बहुत कुछ

इसका स्वाद तुम्हारी रोटियों में पहुँच जाएगा
दौड़ने लगेगा
तुम्हारी धमनियों में
तुम्हारे रोम-रोम में समा जाएगा

रफ़्ता-रफ़्ता यह ईंधन ज़रूरी हो जायेगा तुम्हारी साँसों के लिए
यह कविता की तरह है
बल्कि यह कविता ही है

उत्फुल्ल होते लोग सहसा उदास हो गये
उन्होंने मुझे लौटा दिया एक और पता दे
यह सम्पादक का था
अब मैं कहाँ जाऊँ...
निहितार्थ के लिए
कविता के अलावा
बंद हैं हर जगह दरवाज़े।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.