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मिट्टी-1 / अमिता प्रजापति

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मैं थी
शुष्क बिखरी पड़ी मिट्टी
फिर तुम आए
तुमने मुझे सींचा
मैं महक उठी
तुमने मुझे साना
और मुझमें लोच आ गया
मैं तुमसे नित नया
आकार पाती रही
और आदी होती गई
तुम्हारे द्वारा आकारित होने की
तुम्हारा दिया
यह लोच और यह नमी ही
मुझे राजी रखते हैं
और प्रस्तुत रखते हैं
तुम्हारे स्पर्श से मिलने वाले
हर नए आकार के लिए