फिर शायद कभी कुछ न सोचूँ काम में इतना बझ जाऊँगा कि कभी याद भी शायद न आए पर निशान तो रह ही जाएगा जैसे पपीते के पूरे शरीर पर खाँच हर पत्ते के टूटने की-- हर क़दम की मोच वैसे ही केवल निशान