Last modified on 5 नवम्बर 2009, at 14:31

ज़ुर्म / अरुण कमल

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:31, 5 नवम्बर 2009 का अवतरण

जब मेरा शरीर अस्सी घावों से पटा था
और मैं बहुत मुश्किल से
पाँव टेकता
खड़ा हो पाया था लाशों के बीच
दोस्तों के चेहरे पहचानता

वे आए
लाशों को लांघते
इत्र लगाए
सफ़ेद रुमाल से नाक दाबे
और कहा-- तुम्हारी वर्दी का एक बटन
टूटा है

हाँ
मैंने माना
बहुत बड़ी चूक है यह
बहुत बड़ा जुर्म
लेकिन श्रीमान अभी मुझे पानी चाहिए
कंठ भिगोने को थोड़ा-सा पानी।