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अन्त / नरेन्द्र मोहन

रचनाकार : नरेन्द्र मोहन


मैं मौन का दरवाज़ा

लांघता हूँ

बिना शब्द किये

अन्त की ओर


यहाँ न रंग दिखते हैं न रेखाएँ

न रूप न अरूप

दिखती है

एक चमकीली मछली

जूझती

हाँफती

तेज़ लहरों के खिलाफ


अन्त की शुरूआत ऐसे ही होती है क्या ?