Last modified on 6 नवम्बर 2009, at 13:35

नंदलाल बस में

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:35, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नन्दलाल ने देखा
भीड़ के सैलाब में
डूबती-उतरती 'नूरी'
बस में चढ़ी
रेल-पेल घिरी
झूलती-सी खड़ी
जैसे---
प्लास्टिक की गुड़िया
च्युईंगम चबा रही हो
और लोहे के सैण्डल पहने
चुम्बक पर चलने की कोशिश में
लड़खड़ा रही हो

पर चूका नहीं नन्द लाल
लपककर उसने
एक मर्द सीट पर कब्ज़ा जमा लिया
और कुछ यूं महसूस किया
जैसे चुनाव जीत लिया हो

निःसन्देह नन्दलाल ने
उस जांच खुजाते शख्स से
टकराती
सकुचाती
हड़बड़ाती 'नूरी' को देखा
माना कि वह लगती भली है
और नन्दू के मन की सीढ़ियां
उतरती चली जाती हैं
पर तीन सीट दूर खड़ी
एक मूर्खा के लिए
वह क्यों
स्थान खाली करे
और इस उमस में
पिसे मरे
लिहाज़ा,
बैठे-बैठे मरने की सुविधा
उसपर हावी हो गई

पर नन्दु मरा नहीं
बस चली
गर्म हवा ने उसे सुलाया
उसे दिन का सपना आयाः
बस की शक़्ल का एक ओवन
तप रहा है
जिसमें आदमी
पावरोटी-सा
पक रहा है।