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न वन में न मन में / अवतार एनगिल

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बारिश बरसी
धूप भी चमकी
फिर भी वह सतरंगा जादू
न वन में
न मन में

कभी सफेद
कभी काले वन
तिरछे चले प्यादे
राजा और वजीर के मारे
हम हारे
इस रण में

नीले, पीले, लाल हरों ने
ऐसे खेल दिखाए
बस हम कैदी बनकर रह गए
अपने ही
उपवन में

अम्बर के दूजे कोने पर
इन्द्र्धनुष तो निकला
फिर भी वह बेचारा गिरकर
टूट गया
आँगन में