कैप्टन देवदत्त और मेजॅर सिद्धर्थ
दोनो चचेरे भाई
जब भी शिकार पर जाते हैं
उनके पास बकायदा परमिट होता है
पर धूल-धूसरित आकाश पर
कभी-कभी ही दिखता है
नीली चिड़ियों का उड़ता काफिला
एकाएक जंगल की ख़ामोशी में
बंदूक की गर्ज़ के बाद
काली नोकीली चट्टान पर
धम्म से गिरते हैं
दो रक्तिम सफेद हंस
तृप्त अभिजात्य मुस्कान सहेज
मेजॅर देवदत्त
कैप्टन सिद्धर्थ के कंधे पर हाथ धरते हैं
फिक्रमंद सिद्धर्थ
एक ठण्डी साँस भरते हैं
उनके नये इम्पोर्टिंग रोस्टर की
आज परीक्षा है
पर छुट्टी से वापस नहीं आया महाराज
शिकारियों को उसी की प्रतीक्षा है।