Last modified on 6 दिसम्बर 2006, at 18:12

मातृभूमि / सोहनलाल द्विवेदी

अंतरिक्ष (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:12, 6 दिसम्बर 2006 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
रचना संदर्भरचनाकार:  सोहनलाल द्विवेदी
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।

गंगा यमुन त्रिवेणी
नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली
पग पग छहर रही है।

वह पुण्य भूमि मेरी,
वह स्वर्ण भूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

झरने अनेक झरते
जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं,
हो मस्त झाड़ियों में।

अमराइयाँ घनी हैं
कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,
तन मन सँवारती है।

वह धर्मभूमि मेरी,
वह कर्मभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी।

जन्मे जहाँ थे रघुपति,
जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता।

गौतम ने जन्म लेकर,
जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई,
जग को दिया दिखाया।

वह युद्ध–भूमि मेरी,
वह बुद्ध–भूमि मेरी।
वह मातृभूमि मेरी,
वह जन्मभूमि मेरी।