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जन्मकथा / अशोक वाजपेयी

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तुम्हारी आँखों में नयी आँखों के छोटे-छोटे दृश्य हैं।
तुम्हारे कन्धों पर नये कन्धों का
हल्का-सा दबाव है-
तुम्हारे होठों पर नयी बोली की पहली चुप्पी है
और तुम्हारी उँगलियों के पास कुछ नये स्पर्श हैं
माँ, मेरी माँ,
तुम कितनी बार स्वयं से ही उग आती हो
और माँ मेरी जन्मकथा कितनी ताज़ी
और अभी-अभी की है !

(1960)