Last modified on 8 नवम्बर 2009, at 20:31

सीपी / त्रिलोचन

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:31, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>कुंड कनौरा का देखा-- मल्लाह जाल से म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुंड कनौरा का देखा--
मल्लाह जाल से
मछली मार रहे थे
ज़िन्दा सीपी उन्हे मिली थी।
उसे दिखाने में मछुवारों को
कोई आपत्ति नहीं थी, वे भी
दिखा रहे थे, बता रहे थे।

जो भी मैंने सीपी, अब तक
देख रखी थी
उस में त्वचा नहीं थी
पंजों के बल उचक उचक कर
जगह बदलते, और जनों की बातें सुनते
मैं भी उत्साहित था।

जब भी गया कनौरा मैं
कुण्ड भी ज़रूर देखने गया
शायद वह सीधी तिरती हुई
दिखाई दे जाय।

14.10.2002