Last modified on 11 नवम्बर 2009, at 08:10

मुनगा / त्रिलोचन

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 11 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>इतने सारे फूल, डालें, टहनियाँ भार स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

इतने सारे फूल,
डालें, टहनियाँ भार से
झुकी झुकी पड़ती हैं
लगता है अब टूटीं, बस टूटीं


कहा था रहीम नें
सहिजन अति फूलै तऊ
डार पात की हानि।

बखरी में जो जनमें
उनके कई नाम होते हैं
सहिजन को मुनगा भी कहते हैं
फूल की अधिकाई से क्या हुआ
उसकी तो कहीं कोई चर्चा नहीं करता
लाँबी खाँबी फलियाँ
रसोई में पहुँचती हैं।

9.11.2002