Last modified on 12 नवम्बर 2009, at 21:35

राम दो निज चरणों में स्थान / भजन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:35, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKBhajan |रचनाकार= }} <poem>राम दो निज चरणों में स्थान शरणागत अपना जन ज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

राम दो निज चरणों में स्थान
शरणागत अपना जन जान


अधमाधम मैं पतित पुरातन ।
साधन हीन निराश दुखी मन।
अंधकार में भटक रहा हूँ ।
राह दिखाओ अंगुली थाम।
राम दो ...

सर्वशक्तिमय राम जपूँ मैं ।
दिव्य शान्ति आनन्द छकूँ मैं।
सिमरन करूं निरंतर प्रभु मैं ।
राम नाम मुद मंगल धाम।
राम दो ...

केवल राम नाम ही जानूं ।
और धर्म मत ना पहिचानूं ।
जो गुरु मंत्र दिया सतगुरु ने।
उसमें है सबका कल्याण।
राम दो ...

हनुमत जैसा अतुलित बल दो ।
पर-सेवा का भाव प्रबल दो ।
बुद्धि विवेक शक्ति सम्बल दो ।
पूरा करूं राम का काम।
राम दो निज चरणों में स्थान