Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 21:01

रावरे नेह को लाज तजी अरु / मतिराम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:01, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> रावरे नेह को लाज तजी अरु, गेह के काम स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रावरे नेह को लाज तजी अरु, गेह के काम सबै बिसरायो।
डारि दयो गुरु लोगन कौ डर, गाँव-चवाईं में नाम धरायो।।
हेतु कियो हम जेतो कहा, तुम तौ 'मतिराम' सब बिसरायो।
को‍उ कितेक उपाय करौ, कहुँ होत है आपनो पीउ परायो।।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।