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गीत(2) / महादेवी वर्मा

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अलि अब सपने की बात--
हो गया है वह मधु का प्रात!
जब मुरली का मृदु पंचम स्वर,
कर जाता मन पुलकित अस्थिर,
कम्पित हो उठता सुख से भर,
नव लतिका सा गात!
जब उनकी चितवन का निर्झर,
भर देता मधु से मानससर,
स्मित से झरतीं किरणें झर झर,
पीते दृगजलजात!
मिलनइन्दु बुनता जीवन पर,
विस्मृति के तारों से चादर,
विपुल कल्पनाओं का मन्थर--
बहता सुरभित वात!
अब नीरव मानसअलि-गुंजन,
कुसुमित मृदु भावों का स्पन्दन,
विरह-वेदना आई है बन--
तम तुषार की रात!