Last modified on 14 नवम्बर 2009, at 21:33

ध्यान / परवीन शाकिर

Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:33, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हरे लान में
सुर्ख़ फूलों की छाँव में बैठी हुई
मैं तुझे सोचती हूँ
मिरी उँगलियाँ
सब्ज़ पत्तों को छूती हुई
तेरे हमराह गुज़रे हुए मौसमों की महक चुन रही हैं
वो दिलकश महक
जो मेरे होंठ पे आके हल्की गुलाबी हँसी बन गई है
दूर अपने ख़्यालों में गुम
शाख़ दर शाख़
इक तीतरी खुशनुमा पर समेटे हुए उड़ रही है
मुझे ऐसा महसूस होने लगा है
जैसे मुझको पर मिल गए हो