Last modified on 14 नवम्बर 2009, at 21:46

उसकी आवाज़ / परवीन शाकिर

Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:46, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितनी शफ़्फ़ाफ़ है ये आवाज़
चश्मे की तरह से जिसने मेरे
अन्दर के तमाम मौसमों को
आईना बना के रख दिया है
पत्थर हो कि फूल ही कि सबज़ा
तारों की बारात हो कि महताब
सूरज का जलाल हो कि तन में
ख़्वाबों की धनक खिंची हुई हो
बारिश हो शफ़क़ खिली हुई हो
हर रुत का गवाह उसका लहजा
तह तक जिसे आँख छू के आए

कितनी शफ़्फ़ाफ़ है ये आवाज़