हम तो मोल लिए या घर के।
दास-दास श्री वल्लभ-कुल के, चाकर राधा-बर के।
माता श्री राधिका पिता हरि बंधु दास गुन-कर के।
’हरीचंद’ तुम्हरे ही कहावत, नहिं बिधि के नहिं हर के॥
हम तो मोल लिए या घर के।
दास-दास श्री वल्लभ-कुल के, चाकर राधा-बर के।
माता श्री राधिका पिता हरि बंधु दास गुन-कर के।
’हरीचंद’ तुम्हरे ही कहावत, नहिं बिधि के नहिं हर के॥