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समुद्र-6 / पंकज परिमल

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समुद्र जितनी बार आता है
तट से मिलने
कभी खाली हाथ नहीं आता
लहरें मुस्कुराती हैं हर बार
सीपियों और शंखों का
और असंख्य छोटी-मोटी कौड़ियों का भी
एक-पैकेज छोड़ ही जाती है