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समुद्र-7 / पंकज परिमल

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बूंदों को अभिमान है
कि बूंद-बूंद मिल कर समुद्र बना है
किसी नदी को जिद होती है
समुद्र पर अपना नाम थोपने की
जो तीन में न तेरह में
वे जरा-जरा से गागर चिल्ला रहे हैं
कि उन्होंने गागर में सागर भर लिया है