लेकर अंजुरी में पानी
ख़ुद को देखो तो दिखता है
उसका चेहरा
यूँ मैं अपनी अंजुरी छोड़ती हूँ
वापस नदी में
ख़ुद को ढूंढ़ती हूँ
बहकर बहुत दूर नहीं गई हूंगी
अभी घड़ी भर पहले ज़रा सा
घूँट पिया
अपना मुँह धोया था...।
लेकर अंजुरी में पानी
ख़ुद को देखो तो दिखता है
उसका चेहरा
यूँ मैं अपनी अंजुरी छोड़ती हूँ
वापस नदी में
ख़ुद को ढूंढ़ती हूँ
बहकर बहुत दूर नहीं गई हूंगी
अभी घड़ी भर पहले ज़रा सा
घूँट पिया
अपना मुँह धोया था...।