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पाप / रामधारी सिंह "दिनकर"

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मानव है वह जो गिरा है पाप-पंक में,
सन्त है जो रो रहा ग्लानि-परिताप से।
किन्तु, जो पतन को समझ ही न पाता है,
राक्षस है, दोष कर रोष भी दिखाता है।