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वायु / रामधारी सिंह "दिनकर"

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चाहता हूँ, मानवों के हेतु अर्पित
आयु यह हो जाय।
आयु यानी वायु जो छूकर सभी को
शून्य विस्मृति-कोष में खो जाय।