सादर नमस्कार धर्मेन्द्र जी
एक और किताब पूरी होने पर बधाई स्वीकार करें आप तो इतने कम समय में मेरे ideal भी बन गए हैं, काम करने की गति , लगन , और लक्ष्य पर नज़र सभी गुण झलकते हैं मैं बहुत प्रभावित हूँ और खुद को बदलने के लिए बाध्य ..................................
अपने वार्ता पन्ने से पुरानी वार्ता जो अब अनुपयोगी हो उसे हटाने से नयी वार्ता में आसानी होती है .........
--Shrddha १३:००, २३ अक्टूबर २००९ (UTC)
बड़े कवियों का कूड़ा
प्रिय धर्मेन्द्र जी! ठीक कहा आपने कि कुछ बड़े कवियों की कुछ रचनाएँ कूड़े जैसी लगती हैं। लेकिन चूँकि वे ’बड़े’ बन गए हैं और ’बड़े’ माने जाते हैं इसलिए हमें उनकी सभी रचनाएँ कविता कोश में जोड़नी होंगी। चाहे वे कितनी भी ख़राब हों। बड़े कवि हो जाने का यह फ़ायदा तो उन्हें मिलता ही है जो नए और सामान्य कवियों को नहीं मिलता। --अनिल जनविजय २१:१०, १६ नवम्बर २००९ (UTC)
२५,००० पन्ने का सफ़र तय हो गया
धर्मेद्र जी हार्दिक बधाई:-
बहुत बहुत बधाई, २५,००० पन्ने का सफ़र तय हो गया आपके जैसा साहित्य के प्रति समपर्ण मैंने बहुत कम देखा है मैं २८ दिसंबर तक व्यस्त रहूंगी ऑनलाइन आना नहीं हो सकेगा आने के बाद आपका जोड़ा गया काम आराम से पढूंगी रामधारी सिंह दिनकर जी की रचनाएँ जोड़ने के लिए मेरी शुभकामनाएँ हिंदी साहित्य को अंतरजाल पर इस तरह पैर फैलाते देख मन हर्षित हो उठता है दुआ है कि सभी मिल कर इसी तरह काम करते जाएँ और नए साथी जोड़ते जाएँ, सहयोग, प्रेम, आदर और समर्पण हमारे बीच में जब तक रहेगा, कविताकोश इसी तरह उन्नति करता रहेगा
बधाई के साथ --Shrddha ०१:५८, २१ नवम्बर २००९ (UTC)