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प्रफुल्लता / रामधारी सिंह "दिनकर"

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(१)
धूप चाहते हो घर में तो हँसो-हँसाओ, मग्न रहो,
हरदम ज्ञानी बने रहे यदि तो बदली घिर जायेगी।

(२)
प्रसाधन कौन-सा है निष्कपट आनन्द से बढ़कर?
प्रफुल्लित पुष्प-सी हँसती रहो, इतना अलम है।
मसाले लेप कर क्यों गाल को पंकिल बनाती हो?