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परछाईं / देवेन्द्र रिणवा

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अन्धेरे से बनी होती है
इसकी देह
जितना तेज़ प्रकाश
उतनी गहरी परछाईं
 
इतनी डरपोक और शातिर
कि आँख नहीं मिलाती
ठीक पीछे खड़ी होती है
 
दुबक जाती है पाँव तले
जब आ खड़ा होता है
प्रकाश माथे पर
 
कमज़ोर और लम्बवत्
जब हो जाता है प्रकाश
यह लम्बी हो जाती है
सुरसा की तरह