Last modified on 24 नवम्बर 2009, at 19:31

आप अपना... / ऋतु पल्लवी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज मैंने आप अपना आईने में रख दिया है
और आईने की सतह को
पुरज़ोर स्वयं से ढक दिया है।

कुछ पुराने हर्फ-- दो-चार पन्ने
जिन्हें मैंने रात की कालिख बुझाकर
कभी लिखा था नयी आतिश जलाकर
आज उनकी आतिशी से रात को रौशन किया है।

आलों और दराजों से सब फाँसे खींची
यादों के तहखाने की साँसें भींची
दरवाज़े से दस्तक पोंछी
दीवारों के सायों को भी साफ़ किया है।