Last modified on 24 नवम्बर 2009, at 19:32

तेरी हँसी / सतीश बेदाग़

Harpinder Rana (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:32, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण

तेरी हंसी

देखकर तेरी हँसी,देखा है

आँखें मलता है उस तरफ़ सूरज जागने लगती है सुबह हर ओर धुंध में धुप निकल आती है

पेड़ों पर कोम्पलें निकलतीं हैं बालियों में पनपते हैं दाने भरने लगते हैं रस से सब बागान

जब सिमट आती है हाथों में मेरे तेरी हँसी तब मेरे ज़हन में अल्लाह का नाम आता है

-सतीश बेदाग़