नीला आकाश ,सुनहरी धूप ,हरे खेत
पीले पत्ते ही क्यों उपमान बनते हैं !
कभी बेरंग रेगिस्तान में क्यों
गुलाबी फूलों की बात नहीं होती ?
रूप की रोशनी ,तारों की रिमझिम,
फूलों की शबनमी को ही क्यों सराहते हैं लोग!
कभी अनमनी अमावस की रात में क्यों
चाँद की चांदनी नहीं सजती ?
नेताओं के नारे ,पत्रकारों के व्यक्तव्य
कवि के भवितव्य ही क्यों सजते हैं अखबारों में!
कभी आम आदमी की संवेदना का सम्पादन
क्यों नहीं छपता इन प्रसारों में ?
मैं तुम्हें प्रेम भरी पाती ,संवेदनशील कविता,सन्देश,आवेश
या आक्रोश कुछ भी न भेजूं!
फिर भी मुखरित हो जाए मेरी हर बात
कभी क्यों नहीं होता ऐसा शब्दों पर,मौन का आघात..?