Last modified on 26 नवम्बर 2009, at 01:24

लयभंग / केदारनाथ सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=उत्तर कबीर और अन्य कविता…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब सुबह-सुबह सूरज
जलाता है अपना स्टोव
और आदमी अपनी बीड़ी
तो कितना अजब है कि दोनों को
यह पता नहीं होता
कि असल में यह एक बेचैन-सी कोशिश है
उस सम्वाद को फिर से शुरू करने की
जो एक शाम चलते-चलते
सदियों पहले कहीं बीच रस्ते में
टूट गया था।