बहुत अलग नहीं सभ्य लोगों के हाल और चाल।
पिछली सदियों जैसे तीखे हमारे दाँत और परेशान गुप्तांग।
अलग अलग चेहरों में एक चेहरा
वह एक चेहरा हार का
नहीं, ज़िंदगी से हारना क्लीशे हो चुका
वह चेहरा है मौत से हार का
मौत की कल्पना उस चेहरे पर
कल्पना मौत के अलग अलग चेहरों की
वहाँ खून है, सूखी मौत भी
वहाँ दम घुटने का गीलापन
और स्पीडी टक्कर का बिखरता खौफ भी
ये अलग चेहरे हमारे समय के ईमानदार चेहरे
जो बच गए दूरदर्शन पर आते मुस्कराते चेहरे
दस-बीस सालों तक मुकदमों की खबरें सुनाएँगें
धीरे-धीरे ईमानदार लोग भूल जाएँगे वे चेहरे
अपने चेहरों के खौफ में खो जाते ईमानदार चेहरे।
विद्रोही असभ्य जंगली गुलाब जड़ से उखाड़ते है पर मशीनों से अब
लाचार बीमार पौधे पसरे हैं राहों पर उसी तरह राहें जो पक्की हैं
सदी के अंत में अब।